आजकल ज़्यादातर नौकरीपेशा लोगों को अपनी कंपनी से एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी मिलती है। यह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है — फ्री में मेडिकल कवरेज, हॉस्पिटल का खर्चा कंपनी उठाएगी, और आपको टेंशन लेने की जरूरत नहीं। लेकिन क्या वाकई ये सब कुछ इतना ही सिंपल है?
बिलकुल नहीं।
क्योंकि जो हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी देती है, वो बस एक बेसिक कवरेज होता है। उसमें इतने सारे limitations और conditions होते हैं कि जब आपको सच में ज़रूरत पड़ती है, तब ये पॉलिसी कई बार काम ही नहीं आती। चलो इस पूरे सिस्टम को दिल्ली वाले स्टाइल में थोड़ा खुलकर समझते हैं।
👥 नौकरी छोड़ते ही हेल्थ पॉलिसी भी गई
सबसे बड़ा झटका तो तब लगता है जब आप कंपनी छोड़ते हो — चाहे रिटायरमेंट हो, नौकरी बदली हो या फिर कभी-कभी ले-ऑफ हो गया हो। जिस दिन आपकी नौकरी जाती है, उसी दिन आपकी कंपनी की हेल्थ पॉलिसी भी खत्म।
मतलब — अब अगर उसी महीने आपको कोई मेडिकल एमर्जेंसी हो गई, तो? कोई कवरेज नहीं मिलेगा।
सिचुएशन: मान लो आप जनवरी तक किसी MNC में काम कर रहे थे और फरवरी में आपने जॉब छोड़ दी। मार्च में अचानक कोई हेल्थ इश्यू हुआ — अब कोई कंपनी आपको हेल्थ क्लेम नहीं देगी। अगर अपना पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है, तो सारा खर्चा आपकी जेब से जाएगा।
💰 कंपनी का कवरेज होता है बहुत लिमिटेड
कई बार जो कवरेज दिया जाता है, वो उतना ही है जितना एक नॉर्मल मेडिकल बिल में टेस्ट कराने से भी कम पड़ जाए।
Example:
आपकी कंपनी ने 2 लाख का कवरेज दे रखा है। अब सोचो अगर आपको कोई बड़ा ऑपरेशन कराना पड़े, जैसे हार्ट सर्जरी या कैंसर ट्रीटमेंट — तो 2 लाख में क्या होगा?
आजकल तो एक प्राइवेट हॉस्पिटल में ICU का एक दिन का खर्चा ही 30-40 हज़ार रुपये से शुरू होता है। ऐसे में 2 लाख रुपए का कवरेज बस एक औपचारिकता लगती है।
👪 फैमिली कवरेज में भी गेम होता है
अक्सर लोग सोचते हैं कि कंपनी की पॉलिसी में पूरा परिवार कवर हो गया — लेकिन असल में होता क्या है?
- कई कंपनियां सिर्फ एम्प्लॉई और उनके स्पाउस (पति/पत्नी) तक ही कवरेज देती हैं।
- कुछ में बच्चों का कवरेज भी होता है, पर पैरेंट्स (माता-पिता) का नहीं।
- कहीं-कहीं एक्स्ट्रा फैमिली मेंबर के लिए प्रीमियम अलग से देना पड़ता है।
मतलब, आपने सोचा कि मम्मी-पापा भी कवर हैं, लेकिन जब क्लेम करने जाते हो तो पता चलता है कि उनका नाम ही लिस्ट में नहीं है।
🏥 Room Rent Limit – छुपा हुआ खर्चा
अरे भाई, हॉस्पिटल में अगर आप एडमिट हो जाओ और आपकी पॉलिसी कहे कि “Room Rent Limit ₹5,000 per day” — तो अगर आपने ₹8,000 वाला प्राइवेट रूम लिया, तो एक्स्ट्रा ₹3,000 हर दिन अपनी जेब से देने होंगे। और ये एक्स्ट्रा खर्चा सिर्फ रूम का नहीं, बाकी ट्रीटमेंट चार्जेज भी उसी रेट पर बढ़ जाते हैं।
💊 Pre-existing बीमारियों पर इंतज़ार
बहुत सारी कंपनी हेल्थ पॉलिसी में Pre-existing Diseases यानी पहले से चली आ रही बीमारियों के लिए 2-3 साल का वेटिंग पीरियड होता है।
जैसे: अगर आपको पहले से डायबिटीज है, और पॉलिसी में इसका क्लेम सिर्फ 3 साल बाद मिलेगा, तो बीच में अगर कुछ हो जाए तो वो खर्चा पॉलिसी नहीं उठाएगी।
🧾 OPD और Day-care ट्रीटमेंट – Mostly Not Covered
ज्यादातर ऑफिस की पॉलिसीज़ में OPD (Outdoor Patient Department) खर्चा कवर नहीं होता। मतलब अगर आप डॉक्टर से मिलने गए, ब्लड टेस्ट कराए, या मेडिसिन ली — तो उसका सारा खर्चा आपकी जेब से जाएगा।
📉 No Control on Coverage और Upgrade
आपका कोई कंट्रोल नहीं होता कि पॉलिसी में कितना कवरेज मिलेगा। कंपनी जैसे चाहेगी वैसा प्लान देगी। आप ना तो उसे बढ़ा सकते हो, ना टॉप-अप ले सकते हो। मतलब आप कंपनी के हाथ में हो — और जब वो पॉलिसी बदलेगी, आप सिर्फ ईमेल पढ़ कर “noted” लिख दोगे।
🔄 Portability का झंझट
अगर आप कंपनी की पॉलिसी से बाहर निकल कर उसी प्लान को पर्सनल पॉलिसी में कन्वर्ट करना चाहो, तो या तो ऐसा ऑप्शन ही नहीं होगा या फिर बहुत ही हाई प्रीमियम देना पड़ेगा। और तब भी कंपनी ये देखेगी कि आपने पहले कोई क्लेम किया या नहीं।
🚨 हेल्थ इंश्योरेंस तभी काम आता है जब सही समय पर प्लान लिया हो
अब सोचो — अगर आप 40 साल के हो चुके हो, और कभी कोई पर्सनल पॉलिसी नहीं ली, क्योंकि आपको कंपनी की हेल्थ पॉलिसी मिल रही थी। अब जब आप रिटायर होने वाले हो, तब पॉलिसी लेने जाओगे तो प्रीमियम बहुत ज़्यादा होगा। साथ ही, कई बीमारियों का रिस्क देख कर कंपनियां इंश्योरेंस देने से मना भी कर देती हैं।
✅ पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस क्यों लेना चाहिए?
- कंट्रोल आपके हाथ में: आप decide कर सकते हो कि कितना कवरेज चाहिए, कौन-से फीचर्स चाहिए, कौन-सा हॉस्पिटल नेटवर्क चाहिए।
- फैमिली को भी कवर कर सकते हो — चाहे माता-पिता हों या बच्चे, सबको साथ में जोड़ सकते हो।
- Continuity बनी रहती है — नौकरी छूटे या बदले, आपकी हेल्थ पॉलिसी हमेशा एक्टिव रहेगी।
- Tax Benefit भी मिलता है — धारा 80D के तहत टैक्स में छूट मिलती है।
अगर आप चाहते हो कि आपकी फैमिली मेडिकल इमरजेंसी में कभी फाइनेंशली परेशान ना हो, तो सिर्फ कंपनी की हेल्थ पॉलिसी पर भरोसा ना करें। एक पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस जरूर लें — जितना जल्दी लोगे, उतना सस्ता और फायदेमंद होगा।